Kabir ke Dohe Rashtrabhasha
कबीर के दोहे
Hello students I have shared Rashtrabhasha Kabir ke Dohe कबीर के दोहे in Hindi and English.
दोहों का कंठस्थ
1. पाँच पहर धन्धे गया, तीनपहरगयासोय।
एक पहर हरि नाम बिन, मुक्ति कैसे होय ।।
कबीरदास कहते हैं कि एक दिन में चौबीस घंटे होते हैं। इनमें पंद्रह घंटे काम–धंधों में बिता देते हैं, नौ घंटे सोने में। हमें हरि स्मरण करने फुरसत ही नहीं मिलती। हरि स्मरण किये बिना कोई मुक्ति कैसे पा सकता है ? अर्थात् हरि स्मरण से ही कोई मुक्ति पा सकता है ।
Kabir das says that there are twenty four hours in a day. In these, fifteen hours are spent in work, nine hours in sleep. We do not get time to remember God. How can one attain salvation without remembering God? That is, one can attain salvation only by remembering God.
2. रूखी सूखी खायके, ठंडा पानी पीव ।
देखपराईचूपड़ी, मत ललचावे जीव ।।
कबीरदास कहते हैं कि प्राप्त वस्तु से हमें संतुष्ट हो जाना चाहिए। अगर हमें खाने के लिए रूखी–सूखी रोटी और पीने के लिए ठंडा पानी ही मिले तो उसीसे हमें तृप्त हो जाना चाहिए। दूसरों के घर में बनी घी लगायी रोटी के लिए ललचाना नहीं चाहिए ।
Kabirdas says that we should be satisfied with what we get. If we get only dry bread to eat and cold water to drink, then we should be satisfied with that. One should not be tempted to eat roti made in the house of others with ghee applied on it.
3. धीरे–धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय |
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय ।।
मनुष्य का मन चाहता है कि सभी काम अभी हो जाएँ। इसपर कबीरदास कहते हैं कि सभी काम सही वक्त पर ही होता है। उदाहरण देते हुए संत कवि कहते हैं कि हे मन ! काम धीरे–धीरे ही होंगे। पेड़ों को सौ घड़ा पानी देने पर भी ऋतु के आने पर ही पेड़ फल–फूल देते हैं ।
The human mind wants all things to be done now. On this Kabirdas says that all work is done at the right time. Giving examples, saint poets say that O mind! Work will happen slowly. Even after giving hundred pitchers of water to the trees, the trees give fruits and flowers only when the season comes.
Kabir ke Dohe Meaning
कबीर के दोहे भावार्थ
1. माला फेरत जुग भया, फिरानमनकाफेर।
कर का मन का डार दे, मन का मनका फेर ।।
कवि परिचय : कबीर के बारे में कहा जाता है कि सन् 1398 में काशी में उनका जन्म हुआ और सन् 1518 के आसपास मगहर में देहांत हुआ। कबीर ने विधिवत् शिक्षा नहीं पायी थी, परंतु सत्संग, पर्यटन तथा अनुभव से उन्होंने ज्ञान प्राप्त किया था ।
Poet Introduction: It is said about Kabir that he was born in Kashi in 1398 and died in Maghar around 1518. Kabir did not get formal education, but he gained knowledge through Good accompaniment, travel and experience.
भावार्थ : कबीरदास बाह्याडंबर पर विश्वास नहीं करते थे। कई लोग भक्ति के नाम पर माला फेरते हैं, जप–तप करते हैं। ये सब बाह्याडंबर हैं । इन बाह्याडंबरों से मन में कोई सुधार नहीं होता, समय ही व्यर्थ होता है।
Meaning: Kabirdas did not believe in extravagance. Many people turn rosary in the name of devotion, chant and do penance. These are all extravagances. There is no improvement in the mind by these extravagances, time is wasted.
कबीर कहते हैं कि लोग बैठे–बैठे जपमाला को फेरते रहते हैं। लेकिन मन परिवर्तन के लिए कोई प्रयास नहीं करते। कबीर उन लोगों से कहते हैं कि हाथ की माला को दूर फेंककर मन की माला को फेरने का प्रयास करो। अर्थात् मन सुधार का प्रयास करो ।
Kabir says that people keep turning the rosary while sitting. But they don’t make any effort to change their mind. Kabir tells those people to throw away the rosary of the hand and try to turn the rosary of the mind. Means try to reform your mind.
2. माटी कहे कुम्हार से, तूक्यारौंदेमोंहि।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूंगी तोहि । ।
कवि परिचय : कबीर के बारे में कहा जाता है कि सन् 1398 में काशी में उनका जन्म हुआ और सन् 1518 के आसपास मगहर में देहांत हुआ। कबीर ने विधिवत् शिक्षा नहीं पायी थी, परंतु सत्संग, पर्यटन तथा अनुभव से उन्होंने ज्ञान प्राप्त किया था।
Poet Introduction: It is said about Kabir that he was born in Kashi in 1398 and died in Maghar around 1518. Kabir did not get formal education, but he gained knowledge through Good accompaniment, travel and experience.
भावार्थ : कबीरदास कहते हैं कि किसी को कमज़ोर समझकर सताना नहीं चाहिए, क्योंकि समय एक–सा नहीं रहता । कमज़ोर आदमी भी कल बलवान बन सकता है। उदाहरण देते हुए कबीरदास कहते हैं, कुम्हार माटी को रौंदकर बर्तन बनाता है; इससे दुखी होकर माटी, कुम्हार से कहती है कि आज तुम मुझे रौंद रहे हो । कल तुम शव बनकर मेरे पास आओगे तो मैं तुम्हें रौदूँगी ।
Meaning: Kabirdas says that no one should be harassed considering them weak, because time does not remain the same. Even a weak man can become strong tomorrow. Giving examples, Kabirdas says, the potter makes utensils by trampling the soil; Saddened by this, the soil tells the potter that today you are trampling on me. Tomorrow if you come to me as a dead body, I will make you cry.